Saturday, October 29, 2011

मेरे बाद......

कुछ घड़ी बस स्नेह की बहती नदी में,
ज्वार भावों का उठेगा और गिरेगा,
मेरे पद्चिन्हों पे चल कर तम की नगरी,
सूर्य कोटि रश्मियों से भी लड़ेगा।
आँसू के कुछ धार बहते नैन तल से,
होंठों का स्पर्श कर सिहरन करेंगे,
याद कर के खामियों और खूबियों को,
लोग मुझको देवता,दानव कहेंगे।

याद होगी,बात होगी,मेरी कुछ रचनायें होगी,
पर न जाने उस जहाँ में मौन मै कैसा रहूँगा?

मेरे बाद,मेरे बाद.................।

चाहता था जो मै करना कर सका ना,
वक्त की आँधी से लड़ कर बह सका ना।

मैने ढ़ाला स्वयं को उन्मुक्त कर के,
पर जमाना चाहा जैसा कर सका ना।

कुछ घड़ी हर साँस तुम पर कर न्योछावर,
मैने मन के,तन के तार तुमसे जोड़े,
हर दशा में जो दिशा विपरीत तुमसे,
एक क्षण में साथ उन राहों का छोड़े।

पर न जाने आज तुमसे दूर होकर,
इस जहाँ में मै अकेला कैसा रहूँगा?

मेरे बाद,मेरे बाद....................।

कौन है जो समय पर बदला नहीं है,
कौन है जो मौत से डरता नहीं है,
है स्वरुप भिन्न,भिन्न छटायें कुछ नयी सी,
कौन ठोकर खा के उठकर चलता नहीं है।

आज गर है नाम तेरा,दाम तेरा,
कल तेरे राहों में छायेगा अँधेरा,
लाख चाहे रोकना इंसान खुद को,
मिट्टी का तन,मिट्टी में डाले बसेरा।

पर तुम्हारे कदमों की इक धूल बनकर,
उड़ता,उड़ता बस यहाँ से मै वहाँ तक।
नाम के बिन बस बना बेनाम आशिक,
होकर भी ना होने सा कैसा रहूँगा?

मेरे बाद,मेरे बाद.................।

मेरे परिजन,संग साथी और संगाती,
जन्म के उल्लास से मरघट के साथी,
मेरे पिछे आँसू अपने पोंछते है,
क्यों गया ये दूर ऐसा सोचते है।

मौत की शैय्या बिछी है मै पड़ा हूँ,
आत्मा बन सामने सब के खड़ा हूँ,
देखता हूँ सामने है दृश्य न्यारा,
जिंदगी की दौड़ में कोई है हारा।

पर ज्यों ही हाथों को बढ़ाकर छुना चाहूँ,
स्वप्न से मानो भयंकर जाग जाऊँ,
दूर है अब दूरियों में प्यार सिमटा,
पर तुम्हारे बिन मै मर भी न सकूँगा।

मेरे बाद,मेरे बाद...................।