तुम चली गयी,
पर गया नहीं,
एहसास तुम्हारे होने का।
दिल के खाली उस कोने का,
वो दर्द तुम्हारे खोने का।
गुमशुम हूँ,चुप हूँ,खोया हूँ,
एकाकीपन में रोया हूँ,
कभी शाम ढ़ले फिर आओगी,
पलकों पे सपने बोया हूँ।
अब बीत गयी है रात,
नहीं तुम पास,
पहर ये रोने का।
तुम चली गयी,
पर गया नहीं,
एहसास तुम्हारे होने का।
सूनापन मन में छाया है,
पतझड़ का रुत फिर आया है,
खाली,खाली तुम बिन आँगन,
आँसू ने साथ निभाया है।
कुछ बूँद गिरे,
बन याद तेरे,
ये वक्त है कल में खोने का।
तुम चली गयी,
पर गया नहीं,
एहसास तुम्हारे होने का।
मन वीणा के हर तार से,
झंकृत होती तेरी आहट,
हर मौन मुखरित हो जाता है,
लहरे जो बुलाती सागर तट।
कुछ कदम बढ़े,
कुछ ठहर गये,
टूटे सपनों को बोने का।
तुम चली गयी,
पर गया नहीं,
एहसास तुम्हारे होने का।
नभ जो है समाया आँखों में,
तारों से सपने दिखते है,
कोरे पन्नों पे मन व्याकुल,
आकुल अंतर का लिखते है।
तेरी राह तके,
सदियों जागे,
कुछ देर तो हक है सोने का।
तुम चली गयी,
पर गया नहीं,
एहसास तुम्हारे होने का।
दिल के खाली उस कोने का,
वो दर्द तुम्हारे खोने का।